आचार्य श्रीराम शर्मा >> मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधान मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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इसमें मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म विधानों का वर्णन किया गया है.....
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मनुष्य-पितृ तर्पण
इसके बाद अपने परिवार से सम्बन्धित दिवंगत नर-नारियों का क्रम आता है।
१- पिता, बाबा, परबाबा, माता, दादी, परदादी।
२- नाना, परनाना, बूढ़े परनाना, नानी, परनानी, बूढ़ी परनानी।
३- पत्नी, पुत्र, पुत्री, चाचा, ताऊ, मामा, भाई, बुआ, मौसी, बहिन, सास, ससुर, गुरु, गुरुपत्नी, शिष्य, मित्र आदि।
..... गोत्रोत्पन्नाः अस्मत् पितरः आगच्छन्तु गृणन्तु एतान् जलाञ्जलीन्।
अस्मत्पिता (पिता) अमुकशर्मा अमुकगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्पितामहः (दादा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो रुद्ररूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
भस्मत्प्रपितामहः (परदादा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो आदित्यरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मन्माता (माता) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा गायत्रीरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्पितामही (दादी) अमुकी देवी दा अमुक सगोत्रा सावित्रीरूपा तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्प्रपितामही (परदादी) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा लक्ष्मीरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम:॥३॥
अस्मत्सापत्नमाता (सौतेली माँ) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
॥ द्वितीय गोत्र तर्पण ॥
इसके बाद द्वितीय गोत्र मातामह आदि का तर्पण करें। यहाँ यह भी पहले की भाँति निम्नलिखित वाक्यों को तीन-तीन बार पढ़कर तिल सहित जल की तीन-तीन अञ्जलियाँ पितृतीर्थ से दें यथा-
अस्मन्मातामहः (नाना) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्प्रमातामहः (परनाना) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो रुद्ररूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मदवद्धप्रमातामहः (बढे परनाना) अमकशर्मा अमकसगोत्रो आदित्यरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मन्मातामही (नानी) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा लक्ष्मीरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम:॥३॥
अस्मत्प्रमातामही (परनानी) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा रुद्ररूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम॥३॥
अस्मद् वृद्धप्रमातामही (बूढ़ीपरनानी) अमुकीदेवीदाअमुक सगोत्रा आदित्यरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
॥ इतर तर्पण॥
समयाभाव में - व्यक्तिगत प्रयोगों में जिनके लिए जलदान आवश्यक है, केवल उन्हीं के लिए तर्पण कराया जा सकता है।
अस्मत् पति: अमुकशर्मा अमुक सगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नम:॥३॥
अस्मत्पत्नी (भार्या) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्री वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्ये स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्सुतः (बेटा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्कन्या (बेटी) अमुकी देवीदा अमुकसगोत्री वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्पितृव्यः (पिता के भाई) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम्। इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नम:॥३॥
अस्मन्मातुलः (मामा) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नम:॥३॥
अस्मभ्राता (अपना भाई) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्सापत्नभ्राता (सौतेला भाई) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्पितृभगिनी (बुआ) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्री वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
अस्मन्मातृभगिनी (मौसी) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्री वसुरूपा तृष्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
अस्मदात्मभगिनी (अपनी बहिन) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्रा वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्सापत्नभगिनी (सौतेली बहिन) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्री वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
अस्मद्श्वशुरः (श्वसुर) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मद् श्वसुरपत्नी (सास) अमुकी देवी दा अमुकसगोत्री वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥३॥
अस्मच्छिष्यः अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मत्सखा अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मदाप्तपुरुषः (सम्माननीय पुरुष) अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥३॥
अस्मद्गुरुः अमुकशर्मा अमुकसगोत्रो वसुपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नम:॥३॥
अस्मदाचार्यपत्नी अमुकी देवी दा अमुकसगोत्री वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम:॥३॥
इसके पश्चात् नीचे लिखे मन्त्र बोलते हुए उसी स्थिति में (पूर्व विधि से) प्राणिमात्र की तुष्टि की कामना करते हुए जल धार छोड़ें।
ॐ देवासुरास्तथा यक्षा, नागा गन्धर्वराक्षसाः।
पिशाचा गुह्यकाः सिद्धाः, कूष्माण्डास्तरवः खगाः॥१॥
जलेचरा भूनिलया, वाय्वाधाराश्च जन्तवः।
प्रीतिमेते प्रयान्त्वाशु, मदतेनाम्बुनाखिलाः॥२॥
नरकेषु समस्तेषु, यातनासु च ये स्थिताः।
तेषामाप्यायनायेतद्, दीयते सलिलं मया॥३॥
ये बान्धवाऽबान्धवा वा, येऽन्यजन्मनि बान्धवाः।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु, ये चास्मत्तोयकांक्षिणः॥४॥
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं , देवर्षिपितृमानवाः॥
तृप्यन्तु पितरः सर्वे , मातृमातामहादयः ॥५॥
अतीतकुलकोटीनां, सप्तद्वीपनिवासिनाम्।
आब्रह्मभुवनाल्लोकाद्, इदमस्तु तिलोदकम् ॥६॥
येऽबान्धवा बान्धवा वा, येऽन्यजन्मनि बान्धवाः।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु , मया दत्तेन वारिणा॥७॥
॥ वस्त्र-निष्पीडन ॥
शुद्ध वस्त्र जल में डुबोएँ और बाहर लाकर मन्त्र को पढ़ते हुए अपसव्य भाव से अपने बायें भाग में भूमि पर उस वस्त्र को निचोड़ें (यदि घर में किसी मृत पुरुष का वार्षिक श्राद्ध कर्म हो, तो वस्त्र-निष्पीडन नहीं करना चाहिए।)
ॐ ये के चास्मत्कुले जाता, अपुत्रा गोत्रिणो मृताः॥
ते गृह्णन्तु मया दत्तं, वस्त्रनिष्पीडनोदकम्॥
॥ भीष्म तर्पण ॥
अन्त में भीष्म तर्पण किया जाता है। ऐसे परमार्थ परायण महामानव, जिनने उच्च उद्देश्यों के लिए अपना वंश चलाने का मोह नहीं किया, वे मनुष्य मात्र की श्रद्धा के पात्र हैं। शहीद आदि इसी कोटि में आते हैं। भीष्म उनके प्रतिनिधि माने गये हैं, उनके माध्यम से ऐसी सभी श्रेष्ठात्माओं को नीचे लिखे मन्त्र के साथ पितृतीर्थ से ही जल दान किया जाता है।
ॐ वैयाघ्रपदगोत्राय , सांकृतिप्रवराय च।
गंगापुत्राय भीष्माय, प्रदास्येऽहं तिलोदकम्॥
अपुत्राय ददाम्येतत् , सतिलं भीष्मवर्मणे॥
॥ देवार्घ्यदान ॥
भीष्म तर्पण के बाद सव्य होकर पूर्व दिशा को मुख करें। नीचे लिखे मन्त्रों से देवार्घ्यदान करें। अञ्जलि में जल भरकर प्रत्येक मन्त्र के साथ जलधार अँगुलियों के अग्रभाग से चढ़ाएँ और नमस्कार करें। भावना करें कि अपनी भावश्रद्धा को इन असीम शक्तियों में होमते हुए अन्त:विकास की भूमिका बना रहे हैं। प्रथम अर्थ्य सृष्टि निर्माता ब्रह्मा को-
ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद, विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः।
स बुध्न्या ऽ उपमा ऽ अस्य विष्ठाः, सतश्च योनिमसतश्च विवः॥
ॐ ब्रह्मणे नमः॥- १३३
दूसरा अर्घ्य पोषणकर्ता भगवान् विष्णु को-
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे, त्रेधा निदधे पदम्। समूढमस्य सुरेऽस्वाहा॥
ॐ विष्णवे नमः॥५.१५
तीसरा अर्थ्य अनुशासन-परिवर्तन के नियन्ता शिव-रुद्र महादेव को-
ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ, उतो तऽइषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः॥
ॐ रुद्राय नमः॥-१६१
चौथा अर्ध्या प्रत्यक्ष देवता सवितादेव सूर्य को-
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
ॐ सवित्रे नमः॥- ३.३५
पाँचवाँ अर्घ्य जड़-जंगम प्रकृति का संतुलन (इकॉलाजिकल वैलेन्स) रखने वाले देव-मित्र को-
ॐ मित्रस्य चर्षणीधृतो, ऽवो देवस्य सानसि। द्युम्नं चित्रश्रवस्तमम्॥
ॐ मित्राय नमः॥- ११६२
छठवाँ अर्घ्य तर्पण के माध्यम वरुणदेव को-
ॐ इमं मे वरुण श्रुधी, हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युराचके।
ॐ वरुणाय नमः।- २१.१
॥ नमस्कार ॥
अब खड़े होकर पूर्व की ओर से दिग्देवताओं को नमस्कार करें।
'ॐ इन्द्राय नम:' प्राच्यै ॥
ॐ अग्नये नम:' आग्नेय्यै।
'ॐ यमाय नमः' दक्षिणायै॥
'ॐ निर्ऋतये नमः' नैर्ऋत्यै॥
'ॐ वरुणाय नम:' पश्चिमायै॥
ॐ वायवे नमः' वायव्ये॥
“ॐ सोमाय नमः' उदीच्यै॥
ॐ ईशानाय नम:' ऐशान्ये॥
'ॐ ब्रह्मणे नम:' ऊध्र्वायै॥
ॐ अनन्ताय नम:' अधराये॥
इसके बाद जल में नमस्कार करें।
ॐ ब्रह्मणे नमः।
ॐ अग्नये नमः।
ॐ पृथिव्यै नमः।
ॐ ओषधिभ्यो नमः।
ॐ वाचे नमः।
ॐ वाचस्पतये नमः॥
ॐ महद्भ्यो नमः।
ॐ विष्णवे नमः।
ॐ अद्भ्यो नमः॥
ॐ अपाम्पतये नमः।
ॐ वरुणाय नमः।
॥ सूर्योपस्थान ॥
मस्तक और हाथ गीले करें। सूर्य की ओर मुख करके हथेलियाँ कंधों से ऊपर करके सूर्य की ओर करें। सूर्यनारायण का ध्यान करते हुए मन्त्र पाठ करें। अन्त में नमस्कार करें और मस्तक-मुख आदि पर हाथ फेरें।
ॐ अदृश्रमस्य केतवो, विरश्मयो जनॉ२अनु। भ्राजन्तो अग्नयो यथा। उपयामगृहीतोऽसि, सूर्याय त्वा भ्राजायैष ते, योनिः सूर्याय त्वा भ्राजाय। सूर्य भ्राजिष्ठ भ्राजिष्ठस्त्वं, देवेष्वसि भ्राजिष्ठोऽहं मनुष्येषु भूयासम्।
॥ मुखमार्जन - स्वतर्पण ॥
नीचे लिखे मन्त्र के साथ यजमान अपना मुख धोये, थोड़े से जल का आचमन करें। भावना करें कि अपनी काया में स्थित जीवात्मा की तुष्टि के लिए भी क्रमबद्ध प्रयास करेंगे।
ॐ संवर्चसा पयसा सन्तनूभिः,
अगन्महि मनसा स ॐ शिवेन।
त्वष्टा सुत्रो विदधातु रायः,
अनुमाष्टुं तन्वो यद्विलिष्टम्॥ २.२४
तर्पण के बाद पंच यज्ञ का क्रम चलाया जाता है।
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- ॥ मरणोत्तर-श्राद्ध संस्कार ॥
- क्रम व्यवस्था
- पितृ - आवाहन-पूजन
- देव तर्पण
- ऋषि तर्पण
- दिव्य-मनुष्य तर्पण
- दिव्य-पितृ-तर्पण
- यम तर्पण
- मनुष्य-पितृ तर्पण
- पंच यज्ञ